जब भी गुजरती हूं उन गलियों से
जहां मैं खेला करती थी
वो एखट-दुखट
वो सखियों के साथ भागम-भाग
अब बदल गई हैं गलियां
वहां पहले वाली बात नहीं।
वो घर के बगल का मंदिर
जहां मैं रातों में पढ़ा करती थी
वो रामायण का पाठ
अब कोई नहीं करता
वहां पहले वाली बात नहीं।
वो हमारे स्कूल और कॉलेज
हैं तो वहीं, कुछ नहीं बदला
पर बदल गए हैं अध्यापक
बदल गए हैं दोस्त
वहां पहले वाली बात नहीं।
मेरे पिता का आंगन
आज भी सुहाना है
उनका प्यार भी खजाना है
पर आज वहां
पहले वाली बात नहीं।
मेरा घर आंगन
जहां दुल्हन बनकर आई
अपने को छोड़, अपना बनाने आई
जहां प्यार भी मिला
सम्मान भी मिला
अब न प्यार है न सम्मान
अब वहां पहले वाली बात नहीं।
Written by Radha Rani

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