Sunday, June 17, 2018

यादों के जंगल में गुम


अकसर रातों में
यादों के जंगल से 
मेरी बारात गुजरती है
और कहीं गुम हो जाती है
अकसर रातों में
यादों में कभी तुम होते हो
कभी तुम्हारी यादें होती हैं
तुम्हारी यादों का जंगल बहुत घना है
चाह कर भी नहीं निकल पाती हूं
इस जंगल में तुम्हारी याद है
तुम्हारा प्यार है
तुम्हारी नफरत है
तुम्हारी बेवफाई है
ये सब मिल मुझे घेरे हुए है
मुझे निकलने नहीं देती
और सायद कभी निकल पाऊं
अकसर रातों में
यादों के जंगल में गुम हो जाती हूं।

Written by Radha Rani


No comments:

Post a Comment

अब भी दिल रो देता है

अब भी दिल रो देता है जब भी उन गलियों से गुजरती हूं तेरे होने का एहसास होता है अचानक से कदम खुद रुक जाते हैं और मैं वहीं एक टक तुम्हें वही ढु...