Sunday, February 25, 2018

आज मैंने अपना बचपन देखा...


आज मैंने अपना बचपन देखा..
खुद को देखा ।
बचपन को जलाकर उस राख से बनती ...
एक औरत को देखा ।
उस औरत के हर एक आकांक्षाओ को ...
हर एक उम्मीद को मरते देखा ।
एक छोटी सी कली को ...
फूल बनते देखा ।
उस फूल को पुजा पर ...
तो कभी पैर के नीचे कुचलते देखा ।
कुचले हुए फूल को फिर से...
जुड़ते हुए देखा ।
आज मैंने अपना बचपन देखा ।
बचपन को जलाकर उस राख से बनती...
एक औरत को देखा ।


Written by Radha Rani

Wednesday, February 21, 2018

वही सुबह...वही जिंदगी


घंटो जद्दोजहद
फिर एक गहरा सन्नाटा
घडी की सुई की आवाज
और मेरी दिल की आवाज
दोनों मेरे कानो में गूंजने लगी
अचानक.........
मेरे दिल ने कहा
क्या हुआ
कुछ भी तो नया नहीं ..
वही तो हुआ है
जो सालों से होता आ रहा है
मेरी सुन........
जा, जी अपनी जिंदगी....
छोड़ दुनिया की फ़िक्र
पर दिमाग ने कहा
क्या कर रही हो....
सिर्फ अपनी सोच रही हो.....
तुम ऐसी नहीं हो....
खुद को पहचानो ....
अचानक से  फिर एक गहरा सन्नाटा
दिल और दिमाग की कशमकश में
जीत दिमाग की हुई
और रोज की भांति
वही सुबह...वही जिंदगी

अब भी दिल रो देता है

अब भी दिल रो देता है जब भी उन गलियों से गुजरती हूं तेरे होने का एहसास होता है अचानक से कदम खुद रुक जाते हैं और मैं वहीं एक टक तुम्हें वही ढु...