Saturday, October 28, 2017

छठ महापर्व का समापन


लोक आस्था और सूर्य उपासना का महापर्व छठ आज सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही में संपन्न हो गया। चारदिवसीय इस अनुष्ठान के चौथे दिन अर्ध्य देने के बाद व्रतियों ने अन्न-जल ग्रहण कर ‘पारण’ किया।


छठ पर्व के चौथे और अंतिम दिन आज हज़ारों की संख्या में व्रतधारी और उनके साथ लाखों श्रद्धालु नदी, जलाशयों , पोखर , सरोवर , पार्कों में बने पोंड के किनारे पहुंचते हैं और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना करते हैं...महिलाओं और घर के पुरुष सिर पर बांस की टोकरी, सुप में फल, खजूर आदि लेकर छठ घाट पहुंचते हैं और सूर्य, छठ माता को प्रसाद चढ़ाते हैं और जल में उतरकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।


इसके बाद व्रती अपने घर आकर जल-अन्न ग्रहण कर ‘पारण’ करती हैं और 36 घंटे का निर्जल उपवास समाप्त करती हैं। इसके साथ ही सूर्य देव की उपासना का पर्व छठ सम्पन्न हो जाता है।


बता दें चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार में भगवान सूर्य की आराधना 24 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ ये पर्व सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त हो गया है।


इसपर्व में भगवान सूर्य की पूजा का काफी महत्व है। इस दौरान छठ मइया के भजनो और लोक गीतों की बयार बहती है जिससे सारा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।



.... राधा रानी....

अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य



सुर्य को अर्घ्य देती मेरी मां
आज छठ पर्व का तीसरा दिन था... आज अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया...हम लोगों ने बड़े धुमधाम से आज का दिन बिताया...

छठ पर्व के आज के दिन ..अहले सुबह से ही हमारी मां उठ के ठेकुआ बनाने में लग गयीं थी....

ठेकुआ बनाने के लिए सुबह सुबह उठकर , स्नान किया जाता है... फिर आटा - चीनी और मोम( घी) को मिलाकर सान लिया जाता है... फिर उसके छोटे छोटे गोली बनाकर सांचे में गढ़ लिया जाता है... और उसके बाद उसको गर्म घी में तल लिया जाता है... ठेकुआ गुड़ का भी बनाया जाता है...

सारे काम होने के बाद डाला सजाया जाता है...डाले में...सारे फल से दो दो फल और ठेकुआ को सुप में डाल कर डाला सजाया जाता है...इन फलों में त्रिफला का बहुत महत्व होता है...आज के दिन इसकी कीमत आसमान छुने लगती हैं....

डाला सजाने के बाद घर के कोई पुरुष उस डाले को अपने सिर पर उठा के घाट पर जाते हैं... एक बार डाला उठाने के बाद सीधे घाट पर ही रखा जाता है... पुरा घर का परिवार घाट पर जाता है... रास्ते में महिलाएं छठ माई के गीत गाते जाती हैं ... फिर घाट पहुंच कर व्रती पानी में खड़ी हो कर सुर्य को प्रणाम करते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं...

ये पुजा एक पारिवारिक पुजा है... इस पर्व में घर के सारे लोग मिलजुल कर सम्मलित होते हैं...
छठ में हर कोई ...छोटा हो या बड़ा सब मिलकर योगदान
देते हैं ...

 इस पर्व में लोग हर गली-मोहल्ले को रास्ते को साफ कर के सजाते हैं... जिसके कारण छठ व्रतियों को सड़क पर चलने में कोई दिक्कत न आए... छठ का पर्व आस्था का पर्व है।


.... राधा रानी....

Wednesday, October 25, 2017

छठ खरना का समापन

छठ पर्व  का आज दुसरा दिन था...पहला नहाय-खाय और दुसरा खरना...आज दिन भर के भागम-भाग के बाद शाम को खरना बनाया जाता है....

हमारी मां ने भी खरना बना कर, छठ माई की अराधना की।

आज के दिन व्रती दिन भर उपवास करके, शाम होने से पहले, गंगा में स्नान कर के खरना बनातीं हैं...खरना में व्रती गुड़ की खीर और छोटी-छोटी रोटी बनातीं हैं...और साथ में चावल का पीठा भी बनातीं हैं। ये प्रसाद अंदर का होता है...बाहर हम भी चीनी वाली खीर और रोटी बनाते हैं।

ये सब बन जाने के बाद मां (व्रती) छठ माई की पुजा कर के थोड़ा सा प्रसाद ग्रहण करतीं हैं... फिर हम छठ माई को प्रणाम कर के मां को प्रणाम करते हैं...और प्रसाद खाते हैं।

इस तरह खरना बना कर के खरना पुजा जाता है...।

 पुरा दिन व्यस्थता से भरा था.... लोगों का आना-जाना लगा रहा...

कुल मिलाकर आज का दिन भी उमंग से भरा हुआ था....
क्योंकि आज हमने अपने दुर के प्रियजनों से मुलाकात की.... जिनसे सालों मिले हो जाते हैं...


..... राधा रानी...

Tuesday, October 24, 2017

छठ पूजा का नहाय-खाय


आज से शुरू हो गया है, आस्था का महापर्व छठ। मेरी मां ने ये व्रत रखा है। हमारी मां काफी समय पहले से ये व्रत करती आ रही है....आज नहाय-खाय के साथ शुरू होता है ये व्रत...और फिर कल खरना बनाया जाएगा...और फिर उसके अगले दिन सांझ का अर्ग दिया जाएगा...इसी प्रकार कई तरह के काम करने होते हैं इस पर्व में, और पुरी साफ-सफाई के साथ....


आज नहाय-खाय का खाना बनाया गया... जिसमें अरवा चावल, कद्दु डली दाल, कद्दु की सब्जी, गोभी आलू की सब्जी, धनीया की चटनी, आलू और कद्दु का बचका बनाया गया...


कुल मिलाकर आज के खाने में कद्दु बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है... इस लिए आज के दिन को कुछ लोग कद्दु - बात भी कहते हैं।

कुल मिलाकर आज का पुरा दिन साफ-सफाई और खाना बनाने- खिलाने में गया...

पर मजा आ गया...
... राधा रानी....

Tuesday, October 17, 2017

मैं उड़ना चाहती हुं ...



मैं उड़ना चाहती हुं
दुर कहीं जाना चाहती हुं...
मुक्त गगन में
अकेले....
बिना किसी सहारे
अपनी मंजिल को पाना चाहती हुं
मत रोको मुझे
उड़ने दो...
मुझे अपने पंख फैलाने दो
पिंजरा नहीं...
मुझे खुला आकाश चाहिए.
जीने के लिए जमीं का साथ चाहिए
मेरे पंख मत कतरो
मुझे भी आजाद होने का हक है
हक है बेफिक्र उड़ने का
खुली हवा में सांस लेने का
मैं उड़ना चाहती हुं
मुझे उड़ने दो
मुक्त गगन में ।।

Written by Radha

मेरी प्यारी सखी (कलम)


ओ री सखी
मेरी प्यारी सखी
तु कितनी सच्ची है...
मेरे जीने का आधार है
तु है , तो मैं हूं
तुझ बिन मेरा कौन यहां
सुनता कोई बात है...
तु मेरी आवाज़ है
तु जीने का सार है
तु हर ग़म की साथी
तु हर खुशी की साज़ है...
मेरी हर एक-एक आंसुओं का
तु ही लब्जेबयां है
तु हर जगह है...
तु हर वक्त है...
तु ही इतिहास है...
तु ही आज है...
मैं खुश हूं तो तु है
मैं रोऊं तो तु है
मैं उदास हूं तो तु है
मैं शांत हूं तो तु है...
जीने के हर एक छन में
तु मेरे साथ है
ओ री सखी
मेरी प्यारी सखी
तु कितनी अच्छी है ।।




                                                                                                                रचना- राधा रानी

दीया..


मिट्टी मेरी आत्मा है
दो हाथ मेरे जन्मदाता
खुद को जलाकर...
करती हूं रौशन...
मंदिर और घर-आंगन
पर ये बात हो गई पुरानी
पुरानी हो गई मिट्टी
थक गए वो हाथ
बदल गई वो नज़रें
जिनके घर होता था मुझसे
त्योहारों का दशहरा।।

रचना-राधा रानी...

ये मेरी कविता उस दीया को समर्पित है, जो खुद को जलाकर दुसरों के घर में रौशनी भर देती है। हर पर्व त्यौहारों में इनका जलना शुभ माना जाता है। इनसे निकली रौशनी पुरे वातावरण को शुद्ध कर देती है। बिना इनके कोई भी पुजा अधुरी होती है। इनकी चमक से घर-आंगन का कोना-कोना चमक उठता है। पर आज इनकी चमक कहीं खो सी गई है।
इसका कारण बस एक ही है... लोगों का बदलता नजरिया। लोग आज बाहरी चकाचौंध पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। रंग बिरंगी लाइट्स लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे है। जिसके कारण विदेशी दीया के आगे हमारी देशी दीया फिकी पड़ती जा रही है। इस चकाचौंध के आगे सिर्फ देशी दीया ही नहीं बल्कि उनको बनाने वाले हाथ भी इन चमक में कहीं खोते जा रहे हैं । जहां हम अपने घर में रौशनी भर रहे होते हैं, वहां वो अपने बनाये दीयों में तेल को तरस जाते हैं। पर्व-त्योहार , इनके घर रौशनी भरी खुशियां नहीं बल्कि अंधेरों भरा गम लेकर आतें हैं।
पर इनका ये अंधेरा हम खुशियों से भर सकते हैं। बस एक पहल करनी होगी...हम अपनी खुशियों को मिट्टी के दीप से ही रौशन करें तो।
करेंगे ना आप...?

Written by: Radha Rani

ढकियानुसी बातें !......

भगवान ने औरत और मर्द दोनों को बनाया है... दोनों एक ही हारमांस के बने हैं ...पर कुछ ढकियानुसी बातों को सिर्फ औरतों को ही क्यों झेलना पड़ता है??

जैसे कि, सबको खिलाकर खाना खाने की बात....यार मैं कहती हूं कि क्या उनको पहले भुख नहीं लग सकती?? क्या जरुरी है सबको खाने के बाद खाने की... ये हर घर की बात नहीं है...कुछ पुरानी मानसिकता वाले लोगों की वजह से कुछ औरतों को झेलना पड़ता है...

अगर उनको पहले मुख लगी तो अपना पेट दबाए, मुंह पर मुस्कान चढ़ाए..सबका हुकुम बजाना पड़ता है...

ज्यादा से ज्यादा आप हवा खा सकते हैं... थोड़ा पेट तो भर ही जाएगा... अगर भुल से भी पहले खा लिया तो आपको सुनना पर सकता है कि बेल्लज है, बेशर्म है, मायके से मां ने यही सिखाया है, ससुराल को ससुराल नहीं समझती, इत्यादि...
हा हा हा....

वाह री दुनिया....
और तो और इन औरतों की दुश्मन एक औरत ही होती है...जो भुल गयीं होती हैं कि वो भी एक औरत है.
... राधा...

दिमाग है तो उसका अचार डालू


ये मत करो..
वो मत करो..
यहां मत जाओ...
वहां मत जाओ...
ठीक से बोलो...
एक दम पागल है...
दिमाग से काम लो...
ये सारी बातें एक लड़की को शादी से पहले मां-बाप से सुनने को मिलती है और शादी के बाद पति से..
यार क्या न करुं और क्यों न जाऊं ... भगवान ने दिमाग दिया है तो उसका इस्तेमाल तो करुंगी ही...उसका अचार तो नहीं डालुगीं ।
अकसर लड़कीयों के साथ ही ऐसा होता है.. लोगों के मन में बैठ गया है
कि लड़कियां जो भी करेगी गलत ही करेगी... क्योंकि उनके पास दिमाग कम है...
अरे भई आपको कैसे पता हमें दिमाग कम है...क्या हमारे दिमाग का वजन करा रखा है??
जो दिमाग आपके पास है, वहीं हमारे पास भी है...बस अपना सोच हमारे प्रति बदल दीजिए...
कृपया कर आप हमें दिमाग का इस्तेमाल आजादी के साथ तो करने दीजिए...हमें थोड़ा आजादी से कुछ नया करने तो दीजिए... हमें अपनी सोच से आगे तो बढ़ने दीजिए...तब जरुर लड़कियों की सोच पर भरोसा हो जाएगा ।





.... राधा....

Tuesday, September 26, 2017

मेरा लाल


तु है लाल मेरा
तुझसे है मेरी दुनिया
तु मेरी दुवाओं का
आशिर्वाद है
मेरी हर एक सांस
अब तेरा कर्जदार है
तु जब हंस दे
तो दिन है और रात है
तेरी हर एक अदा पर
मेरी जान निसार है
तु खेले खेल-खिलौने
पर मेरा खिलौना है तु
तेरा हंसना
तेरा रोना
तेरी बदमाशियां
आज सब पर मुझे प्यार है 
तु है लाल मेरा।।


Written by Radha

बाइकर्स



पहले तो कहा जाता था कि चार पैर वाले दो पैर वालों से ज्यादा तेज होते हैं...वो फटाफट कहीं भी -जा सकते हैं...मगर आज जमाना कुछ उल्टा ही चल रहा है... दो पैर वाले हवाई जहाज जैसे उड़ान भरने लगें हैं... इनके आगे तो हवाई जहाज भी शर्मिंदा हो जाए ... ये दो पैर वाले हम जैसे दो पैर वालों के नाक में दम कर के रखा है... इनसे हमें डर-डर कर चलना पड़ता है, पता नहीं कब ये आए और हमें लंगड़ी मार के निकल जाएं


अब तो आप समझ ही गए होंगे... मैं किसकी बात कर रही हूं...


जी हां ... आज के जमाने के बाइकर्स... लगता है इनके मां बाप ने इनको बाईक नहीं हवाई जहाज दे दिया हो... ऐसे सड़क पर बाईक चलाते हैं जैसे सड़क उनके बाप की हो... और तो और बाईक स्टंट भी करने लगते हैं... जैसे उनको देख लगता हो कि, किसी बात का गुस्सा निकाल रहे हों बाईक से।

वो ये नहीं देखते कि सड़क पर और भी गाडियां चलतीं हैं...लोग चल सकते हैं...पर उनको इसका कोई फ़िक्र नहीं... आज सड़क किनारे खड़े होने पर भी डर लगने लगा है...डर का कारण इनका बाईक को जिगजैग कर के चलाना।

अरे भाई ये बाईक है कोई हवाई जहाज नहीं, जो उड़ा रहे हो।

हमें हमेशा कहा जाता था कि सड़क किनारे से चलना , सड़क के बीच मत चलना...पर अब हमारे परिजन क्या कहेंगे...यही कि घर से बाहर मत निकलना।

अरे इनके परिवार वालों को समझाना चाहिए कि , ये खुद तो मरेंगे, साथ साथ दुसरों को भी मारेंगे।


Written by Radha

Saturday, September 23, 2017

क्या हो तुम !

क्या हो तुम
जो समझते हो खुद को
तुम छंद मात्र  हो
एक पानी का बुलबुला
जो उगे तो हो
पर मिटना तय है
करते हो बड़ी-बड़ी बात
पर वो तो लगती है
तुच्छ मात्र
अपनी इच्छाओं की बात करते हो
दुसरे की इच्छाओं का
क्या कभी सोचते हो?
काले घेरे में 
आंखें क्यों छिपाते हो
सच को देखो
अपनी कमी को समझो
क्या सो चुके हो तुम
अब तो जाग जाओ
सबेरा हो चुका
कब तक रात मनाओगे
कभी तो सुबह लाओगे।





Witten by Radha

Monday, September 4, 2017

हस मत पगली प्यार हो जाएगा ☺

हस मत पगली प्यार हो जाएगा....
रो मत पगली , मैं फिर आउँगा
गुस्सा नहीं पगली, प्यार चाहिए....

ये सारे वाक्य आपको ट्रकों और बसो में देखने को मिल जाएगें...पर क्या आपने कभी सोचा है ...ये ट्रक वाले ऐसा क्यों लिखवाते हैं अपने बसो में...
हा हा हा.....

भई मुझे तो नहीं पता कि क्यों ये अटपटे वाक्य लिखवाते हैं... पर जो भी कहिए पढ़ कर बहुत मजा आता है और हंसी भी आती है...

सायद बस ड्राईवर (हस मत पगली प्यार हो जाएगा)इस लिए लिखवाता है सायद वो हर पगली की हंसी पर खुद पागल होना चाहता हो...पर भगवान वो पागल हो, हमें क्यों हंसा हंसा के पागल बना रहा है...

मैं तो आजकल बसो का प्रयोग ज्यादा ही कर रही हूँ...और न चाहते हुए भी मेरी नज़र इन लिखे वाक्यों पर चली ही जाती है तब मुझे बड़ा हंसी आती है और सोच में पर जाती हूँ की आखिर ये पगली कौन सी बला है ...जिसके पिछे पुरा बस ड्राईवर पड़ा है...
हा हा हा....

मुझे मिल जाए ना वो पगली...तो सच में उसे पगली बना दूँ...और पागलखाने भिजवा दूं...☺






Wednesday, August 30, 2017

कहाँ है मेरी जिंदगी

सुनो.....
कहाँ हो मेरे चाहने वालो
जो जिंदा भी चाहते हो 
मुझे मुर्दा भी चाहते हो
बता सकते हो...
कहाँ है मेरी जिंदगी
क्या खो गई है मेरी जिंदगी_ ?
मैं मांग नहीं सकती
क्योंकि मैं बोल नहीं सकती
तो क्या मुझे भुख नहीं लगती
क्यों नहीं तुम लोग समझते हो
मेरे अंदर भी जान है
मैं भी जीना चाहती हूँ
सौख से लाते तो हो 
पर मेरा ख्याल नहीं रख पाते
जब मैं मर जाऊंगी 
तब कहोगे....
जा.....मर गई मेरी प्यारी
मैं क्या मांगती हूँ तुमसे
बस.... एक ख्याल ही तो
जो एक मिनट से भी कम का है
क्या नहीं है तुम्हारे पास?.
नहीं दे सकते मुझे 
अपना वो एक मिनट
सुनो....
सुन रहे हो ना।।।
Written by: Radha

तुम फिर याद आए हो...


तुम फिर याद आए हो...
यादों की बदली छटी है
कि तुम फिर याद आए हो...
तुम्हारी बातें
तुम्हारी यादें
तुम्हारा हंसना
युं हस के कुछ कहना
कि तुम फिर याद आए हो...
तुम्हारा मुझे समझाना
समझाके खुद रुठ जाना
मेरा तुझे मनाना
हर बात पर मेरी तारीफ करना
कि तुम फिर याद आए हो...
तेरा डरना
डर कर सहम जाना
तेरा मुझे गले लगाना
कि तुम फिर याद आए हो...
यादों की बदली छटी है
कि दोस्त , तुम फिर याद आए हो...
Written by: Radha

सपनो का घर

ये लिखकर मैं अपने एक दोस्त की दर्द को बयां कर रही हुँ......माफी अगर किसी को बुरा लगे...
घर...एक ऐसा ऐहसास जिसका नाम सुनते ही लगता है की जन्नत मिल गया हो...आप कहीं भी रहें, कितना भी व्यस्थ क्यों न रहें, पर घर का नाम सोचते ही एक सुकुन का ऐहसास हो जाता है। अगर बात करें हम मरदों की तो उनका आसियाना एक ही होता है..जहां वो ठाठ से रहते हैं और हक से कहते हैं मेरा घर, मैं घर आ गया ...आदि। उनके मन में कुछ भी अलग तरह की बात मन को विचलित नहीं करती होगी...पर एक महिला की बात करें तो उनको दोघरों को देखकर चलना होता हैं...मायका और ससुराल...दोनो घर के लोगों की फिलींग का ख्याल रखना होता है
पर अगर औरत उन दोनो घरों को सुकुन वाला माने तो ऐसा काफी प्रतिशत कम है...
जब एक लड़की की शादी होती है तो वो बरे अरमान से अपने माता -पिता का घर छोड़कर आती है की उसको उसका अपना घर मिला है..वो बरे आराम से अपने हमसफर के साथ रहेगी बिना किसी रोकठोक के...पर जब वो वहां अकेला महसुस करे...उसको कुछ अच्छा बुरा बताने वाला कोई ना हो तो वो क्या करेगी
...वो अपने मायके जा सुकुन की तलाश करेगी...

कुछ भी कहे जमाना की लड़की ही वजह होती है घर तोड़ने की ...पर मेरा मानना है की परिवार भी जिम्मेवार होता है....
जब कोई भी जानवर को आप तकलीफ देते हैं तो वो प्रतिक्रिया देता है... यहां हम तो इंसान हैं...
एक लड़की के लिए ससुराल दोनो सुरत में सिर्फ एक घर बन कर रह जाता है जब ससुराल में उसपर जुल्म हो या वहां कोई पुछने वाला ना हो...
जब किसी लड़की पर जुल्म होता है तो उसको पता होता है की किसकी गलती है या क्या सुधार करना होगा...पर जहां केई समझे ना, नजरअंदाज कर के उसे रखे ...उसको एहसास दिलाए की तुम कुछ नहीं, तुम्हारी जरूरत नहीं तब क्या करे वो लड़की???...वो मायके के घर में ना सुकुन तलासे???..
इसिलिए जब बहुएं बिमार पड़ती हैं तो मायके आ जाती हैं...ताकी दिमाग से ही नहीं...शरीर से भी आराम पा सके...
क्योंकि मायके में जन्म देने वाली मां जो होती है....

ये लिखकर मैं अपने एक दोस्त की दर्द को बयां कर रही हुँ......माफी अगर किसी को बुरा लगे...

अब भी दिल रो देता है

अब भी दिल रो देता है जब भी उन गलियों से गुजरती हूं तेरे होने का एहसास होता है अचानक से कदम खुद रुक जाते हैं और मैं वहीं एक टक तुम्हें वही ढु...