Saturday, September 23, 2017

क्या हो तुम !

क्या हो तुम
जो समझते हो खुद को
तुम छंद मात्र  हो
एक पानी का बुलबुला
जो उगे तो हो
पर मिटना तय है
करते हो बड़ी-बड़ी बात
पर वो तो लगती है
तुच्छ मात्र
अपनी इच्छाओं की बात करते हो
दुसरे की इच्छाओं का
क्या कभी सोचते हो?
काले घेरे में 
आंखें क्यों छिपाते हो
सच को देखो
अपनी कमी को समझो
क्या सो चुके हो तुम
अब तो जाग जाओ
सबेरा हो चुका
कब तक रात मनाओगे
कभी तो सुबह लाओगे।





Witten by Radha

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