बचालो अपने आशियाने को
इमारत ढह रही है
क्या बचा पाओगे
अपने बुढ़े इमारत को
जो कभी भी तुम्हारा साथ छोड़ देगी
तुम जीवन भर एक गलती दोहराते आए
अपने सिर के छत की कदर नहीं की
तुमने उसे अपने हाल पर छोड़ दिया
बहुत सारी यातनाओं के साथ
तपने के लिए
मौसम का तंश झेलने के लिए
तुम्हें तनिक भी तरस नहीं आया
तुम्हें उसकी कुर्बानी कभी याद नहीं आई
कभी तो याद कर लेते
उस इमारत की एक एक ईंट तुम्हारे लिए थी
पर तुमने क्या दिया
अकेले छोड़ दिया
अब इमारत ढह रही है
हर ईंट कमजोर हो चुकी है
थोड़ी देर के लिए अपना समय निकालो
उसे प्यार दो
ताकि ढहने से पहले उसे
तुम्हारे उसके अपने होने का एहसास हो जाए
क्योंकि इमारत ढह रही है।।
राधा
No comments:
Post a Comment