Thursday, August 30, 2018

स्नेह, प्यार, ममता, दुलार... बस मिल जाए


याद है मुझे... उसकी मासुमियत
अलहर सी...हर वक्त फुदकती रहती थी
उसका भोलापन, उसकी सादगी ही
उसका खजाना हुआ करता था
पर आज उसे देखती हूं तो
लगता है मानो वो खो गई हो
वो अब वो न रही
काफी बदली सी नज़र आ रही थी
आखि़र क्या हो गया उसे
मैंने पूछा , कहां खो गई हो तुम
तुम्हारी हंसी किधर गुम है
बोली, मैंने उसे कैद कर रखा है
बस ढूंढ रही हूं, लोगों के अंदर
स्नेह, प्यार, ममता, दुलार
मिल जाए तो मुक्त कर दुंगी
उस हंसी को, जिसे मैंने कैद कर रखा है
जो कभी मेरे पल-पल की साथी थी
बस ढूंढ रही हूं, लालची लोगों के अंदर
स्नेह, प्यार, ममता, दुलार
बस मिल जाए।।

राधा रानी

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