Friday, August 3, 2018

कहां फंस गए हैं


कहां फंस गए हैं 
कुछ समझ नहीं आता
शांति की चाहत 
बढ़ती ही जा रही है
चारों तरफ लोग हैं
कोई अपना नहीं 
सभी के चेहरों पर 
एक मुखौटा लगा है
पल में कोई अपना होता है
पल में पराया
चहूं ओर फरेब है मक्कारी है
ऐसे हैं लोग जो अपने कहलाते हैं
कहां फंस गए हैं 
निकल नहीं पा रहें।।

राधा रानी

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