आखि़र क्या चाहते हैं हम
अंधों की तरह दौरे चले जा रहे हैं
क्या है हमारी मंजिल
किस चिज़ की तड़प है
जिसे पाने के लिए अनेकों पाप के
भागीदार बने जा रहें हैं..
थोड़े से पैसों के लिए
अपना इमान बेच रहे हैं..
चंद ऐशो-आराम के लिए
मां-बाप को वृद्धाश्रम भेज रहे हैं..
अपने हवस की भुख के लिए
अपने ही बहु-बेटियों को नोच रहे हैं..
थोड़े से समय को बचाने के लिए
ट्रैफिक रुल तोड़ रहे हैं..
आखि़र क्यों?
क्यों अपने बच्चों को अकेला कर रहे हैं
क्यों परिवार से दूर हो रहें हैं
क्यों अपने ही देश को निर्धन बना रहे हैं
आखि़र क्यों?
आखि़र क्या चाहते हैं हम....
राधा रानी
राधा रानी
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