Sunday, September 9, 2018

किताबें बात करना चाहती हैं...

कई अरसों से 
तुम्हें मेरी याद नहीं आईं
कैसे भुला दिया तुमने
मेरे स्पर्श को
जब तुम घंटों मुझे छुआ करते थे
मुझे निहारा करते थे
तब मुझे मेरे होने का
एहसास हुआ करता था
कैसे भुला दिया तुमने
मेरे हरपल के साथ को
बचपन में स्कूल तक
जवानी में कालेज तक 
दिन में पार्क तक
रात में नींद आने तक 
तुम्हारा साथ दिया मैंने
पर आज क्या हुआ
क्यों अकेला छोड़ दिया मुझे
यूं आलमारी में सड़ने के लिए
सिर्फ मोबाइल और कंप्यूटर के लिए
मैं हरपल तुम्हारी राह तकती हूं
सायद आज छु लो मुझे
मुझे यूं अकेला न छोड़ो
दम घुटता है मेरा
यूं आलमारी में परे परे।।

राधा रानी :)

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