Saturday, September 8, 2018

चना, चुड़ा, मुंगफली, मकई


मुड़-मुड़ करती
चुड़-चुड़ करती
मन को बहुत भाती है
चना, चुड़ा, मुंगफली, मकई
भुंनकर बनाई जाती है
मन चाहे तो खाते रोज 
पर शनिवार को अहम है
कहते सब ये ग्रह को काटे
भुंजा इसका नाम है
आसानी से भुख मिटाती
सस्ते में आ जाती है
गुरूवार को खाने से 
बृहस्पति नाराज हो जाते हैं
आज खाते-खाते ये भुंजा मुझको
मन को इतने भाया है
इसलिए ये कविता मैंने 
आपको पढ़ाया है।। 

राधा रानी

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