Friday, April 13, 2018

*यादे कल की , बीते पल की*



पुरानी चादर से छत के कोने पर ही टेंट बना लेते थे ,
क्या ज़माना था जब ऊंगली से लकीर खींच बंटवारा हो जाता था,
लोटा पानी खेल कर ही घर परिवार की परिभाषा सीख लेते थे। 
मामा , मासी , बुआ, चाचा के बच्चे सब सगे भाई लगते थे, 

कज़िन क्या बला होती है कुछ पता नही था।
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.

गर्मी की छुट्टी में कही कोई *समर कैंप* नहीं होते थे,
कंचे, गोटियों, इमली के चियो से खजाने भरे जाते थे,
कान की गर्मी से वज़ीर , चोर पकड़ लाते थे,
सांप सीढ़ी गिरना और संभलना सिखलाता था,
कैरम घर की रानी की अहमियत बतलाता था,
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.


पुरानी पोलिश की डिब्बी तराजू बन जाती थी ,
नीम की निंबोली आम बनकर बिकती थी ,
बिना किसी ज़द्दोज़हद के नाप तोल सीख लेते थे ,
साथ साथ छोटों को भी हिसाब -किताब सिखा देते  थे ,

माचिस की डिब्बी से सोफा सेट बनाया जाता था ,
पुराने बल्ब में मनीप्लान्ट भी सजाया जाता था ,
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.


कापी के खाली पन्नों से रफ बुक बनाई जाती थी,
बची हुई कतरन से गुडिया सजाई जाती थी ,
रात में दादी-नानी से भूत की कहानी सुनते थे ,फिर
डर भगाने के लिये हनुमान चालीसा पढते थे,

स्लो मोशन सीन करने  की कोशिश करते थे ,
सरकस के जोकर की भी  नकल उतारते थे ,
सीक्रेट कोड ताली और सीटी से बनाया जाता था ,
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.


कोयल की आवाज निकाल कर उसे चिढ़ाते थे,
घोंसले में अंडे देखने पेड पर चढ जाते थे ,
गरमी की छुट्टी में हम बड़ा मजा करते थे ,
बिना होलिडे होमवर्क के भी काफी कुछ सीख लेते थे ,
शाम को साथ बैठ कर *हमलोग* देखा जाता था ,
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था......


जैसा भी था मेरा - तेरा बचपन बहुत हसीन था।

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