मैं झुकती
अगर मुझे प्यार मिलता
मैं झुकती अगर
मुझे आदर मिलता
मैं झुकती
अगर मुझे मान-सम्मान मिलता
मैं झुकती
अगर सबका साथ मिलता
मैं तब भी झुकती
अगर मेरे झुकने से सब ठीक होता
ऐसा नहीं की
झुकी नहीं मैं
हर सम्भव कोशिश की
मगर कब तक
हर बार मेरा थोड़ा झुकना
मेरी कमजोड़ी समझा
मेरे सब्र का इंतहान लिया ..............
हो गया, जो अब तक जो होना था
बस अब नहीं...
नारी तुम झुको मगर सिर्फ प्यार और अच्छे रिश्तों के लिए..
जो रिश्ते ढ़ोंग हो उनके सामने झुकना एक नारी को गवारा नहीं
Written by- Radha
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