Tuesday, February 24, 2015

चाहत थी उड़ने की

चाहत थी उड़ने की
बहुत ऊँचा उड़ने की
लेकिन न जाने अब लगता है
मेरे पंख कुतर दिए गए हों
याद है मुझे वो हर बात
जीन बातों पे मेरी हंसी रुकती न थी
पर अब तो चेहरे पर
मायुसी का पहरा है
कुछ सपने थे मेरी आंखों में
जो अब धुंधला-धुंधला सा
दिखाई परता है
मेरे भी थे कई अरमान
मगर उन पर आज किसी का पहरा है
चाहत थी उड़ने की

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