चाहत… चाहत… चाहत
उफ! ये चाहत….
हर रोज एक चाहत…
हर वक्त एक नई चाहत…
हर घड़ी एक अलग चाहत…
उफ! ये चाहत….
दिल चाहत के पीछे…
भागता चला जाता है…
और कभी पुरा भी करता है…
फीर भी…..
कभी खत्म नहीं होती है..ये चाहत…
आखिर ये है कौन सी बला…
जो दिल पागल हो जाता है…
उसे पाने को…
उसे अपना बनाने को…
हर किसी को पागल बनाती है ये चाहत…
किसी को काम की चाहत…
किसी को ऐशो-आराम की चाहत…
किसी को पैसों की चाहत….
तो किसी को…
एक सच्चे हमसफ़र की चाहत…
शायद मेरी भी चाहत...
इनमे से एक है…
अगर ये चाहत पुरी हो जाए…
तो दिन-रात की जद्दो-जहद की खत्म हो जाए…
पर ये चाहत…
कभी खत्म ही नहीं होती…
फीर दिल सोचता है…
आखिर कैसे पुरी होगी ये चाहत…
चाहत… चाहत… चाहत
उफ! ये चाहत….
Written by: Radha Rani
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