क्या कहूं….कैसे कहूं
कुछ कहने को रहा ही नहीं…..
रहेगा जब ना…जब मैं रहने दूं….
इंसान सोचता क्या है….
होता क्या है….
चाहत तो बहुत है…
पर वो पुरा कहां होता….
आप चाहते कुछ हो ….
होता कुछ है…
जिंदगी का क्या….
कभी ढेरो खुशीयां मिलती हैं….
कभी विरानीयां छा जाती हैं…
कभी-कभी तो लगता है….
जिंदगी एक पहेली बनकर रह गई है….
मन कहता है…ज्यादा ना सोचुं….
फीर भी मन उस चाहत की ओर….
खींचा चला जाता है…..
अब कुछ नहीं समझ आता…
जानती हूं…बीता हुआ पल लौटता नहीं….
फीर भी एक आस…अभी भी है बांकी…
सायद कुछ हो ऐसा…
सब बदल जाए…..
क्या कहूं….कैसे कहूं
कुछ कहने को रहा ही नहीं…..
Written By: Radha Rani
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