Sunday, February 25, 2018

आज मैंने अपना बचपन देखा...


आज मैंने अपना बचपन देखा..
खुद को देखा ।
बचपन को जलाकर उस राख से बनती ...
एक औरत को देखा ।
उस औरत के हर एक आकांक्षाओ को ...
हर एक उम्मीद को मरते देखा ।
एक छोटी सी कली को ...
फूल बनते देखा ।
उस फूल को पुजा पर ...
तो कभी पैर के नीचे कुचलते देखा ।
कुचले हुए फूल को फिर से...
जुड़ते हुए देखा ।
आज मैंने अपना बचपन देखा ।
बचपन को जलाकर उस राख से बनती...
एक औरत को देखा ।


Written by Radha Rani

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