सदियाँ बीत गई थीं
एक जरा सा संग
अपनों के साथ गुजारे...
तरस गयी थीं, मेरे एक आहट को
वो घर के खिर्की और दरवाजे
पर मैं नादान
दिन भर की आपाधाप में
खुद से करती थी बेईमानी
पता नहीं पर लगी थी
किसी खजाने की तलाश में
तलाश थी, प्यास थी,
पर एक मजबुरी भी थी
रहती थी दूर अपनो से
परायों का साथ पाये
आज समझ आया
मेरे अपने, ये खिर्की और दरवाजे
यही हैं मेरे ••••
मेरे अनमोल खजाने।।
#radharani