Sunday, March 29, 2020

अपनो के संग


सदियाँ बीत गई थीं 
एक जरा सा संग 
अपनों के साथ गुजारे...
तरस गयी थीं, मेरे एक आहट को
वो घर के खिर्की और दरवाजे
पर मैं नादान
दिन भर की आपाधाप में 
खुद से करती थी बेईमानी
पता नहीं पर लगी थी 
किसी खजाने की तलाश में 
तलाश थी, प्यास थी, 
पर एक मजबुरी भी थी
रहती थी दूर अपनो से
परायों का साथ पाये
आज समझ आया 
मेरे अपने, ये खिर्की और दरवाजे
यही हैं मेरे ••••
मेरे अनमोल खजाने।।

#radharani

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